राणा कुम्भा का गौरवशाली इतिहास | Rana kumbha history in hindi

राणा मोकल का शासन

1382-1421ई. में मेवाड़ पर "राणा लाखा" का शासन हुआ करता था। उनकी शादी मारवाड़ की राठोड राजकुमारी "हंसाबाई" से हुयी। शादी के कुछ सालो पश्चात् राणा लाखा की मृत्यु हो गयी। पिता की मृत्यु के बाद मेवाड़ की गद्दी पर "राना मोकल" का राजतिलक कर दिया गया, जो अभी बालक थे।

राणा मोकल की छोटी आयु होने कारन माता हंसाबाई ने मेवाड की सत्ता सँभालने केलिए मारवाड़ से अपने भाई को बुलाया। बहन का समाचार मिलते ही रणमल अपने राठोड सरदारों के साथ मारवाड़ से मेवाड आ गया। 1433ई. में राणा मोकल गुजरात के सुल्तान 'अहमद शाह' के विरुद्ध अभियान पर जा रहे थे। तब रास्ते में जिलवाडा नामक स्थान पर राणा मोकल के दादा "राना शेत्र सिंग" के दासी पुत्र 'चाचा' और 'मेरा' ने राणा मोकल की हत्या कर दी। 


Rana kumbha real image
                                                                                                        
 Rana kumbha history in hindi 


मेवाड की राज गद्दी पर राणा कुम्भा

राणा मोकल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र कुम्भकर्ण (राणा कुम्भा Rana Kumbha) 1433ई. में मेवाड़ की राज गद्दी पर बैठे। मेवाड़ की गद्दी सँभालते ही राणा कुम्भा ने अपने पिता की हत्या का बदला लेना के निश्चय किया। राना मोकल की हत्या करने का बाद 'चाचा' और 'मेरा' दुर्गम पहाड़ों में छुपे हुए थे। राना कुम्भा ने रणमल राठोड को साथ लेकर 'चाचा' और 'मेरा' पर हमला कर उने मार दिया। लेकिन हमले से भयभीत होकर "चाचा" का पुत्र "महपा" वहा से भागकर मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के शरण में चला गया।      

सुल्तान महमूद खिलजी के साथ युद्ध

राणा कुम्भा ने तुरंत सुल्तान महमूद खिलजी को एक पत्र लिखा। मेवाड के शत्रुवो को मेवाड के हवाले कर दिया जाए, लेकिन जवाब में सुल्तान ने कहा हम मेवाड के सेवक नही जो तुमारे आदेश का पालन करे अगर मेवाड की सेना में ताकद हो तो आकर लेकर जाए। इस जवाब के बाद राना कुम्भा ने सारंगपुर के पास मालवा के सुल्तान खिलजी पर आक्रमण किया। इस युद्ध में खिलजी पराजित हो गया और उसे बंदी बना लीया गया। बंदी बनाकर खिलजी को चितौड़ ले जाया गया जहा उसे 6 महीने तक कैद में रखने के बाद हर्जाना लेकर छोड़ दिया गया। इस विजय के उपलक्ष में राना कुम्भा ने चितौड़ में भव्य विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

रणमल की हत्या 

इस समय राणा कुम्भा ने देखा की रणमल राठोड मेवाड में अपना प्रभाव बनाने में लगा हे। रणमल ने मारवाड़ के राठोड़ सरदारों को उचे उचे पदों पर नियुक्त कर रखा हे। रणमल राना कुम्भा की दादी हंसाबाई का भाई था, इसलिए राना कुम्भा उसे कुछ कहने के स्तिथि में नहि थे। पर राना ने अब तय कर लिया था की अब रणमल को मेवाड से दूर करना हे। राना ने तुरंत आदेश जारी कर मेवाड के पुराने सरदारों को फिरसे उनकी जगहा नियुक्त कर दिया। राना ने रणमल के विरुद्ध पूरा एक चक्रव्यूह तयार कर लिया और अंत में रणमल की हत्या हो गयी। हत्या के बाद रणमल के पुत्र राव जोधाजी अपने मारवाड़ी सरदारों को लेकर मारवाड़ की तरफ फाग गये।

राणा कुम्भा की दिग्विजय यात्रा 

राणा कुम्भा ने रणमल को हटाकर मेवाड की संपूर्ण सत्ता अपने हाथो में लेली थी. राना ने अब दिग्विजय का शंक फुक दिया। अपनी मेवाड़ी सेना और सरदारों को तयार करके राना ने सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मोडालगढ़, बूंदी, खाटू, अन्य कई किलों को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया। राना द्वारा जीते इन सभी राज्यों ने राना को हिन्दू सुरतान की उपाधि दी थी।

गागरौन पर आक्रमण 

राणा जब अपने दिग्विजय अभियान में वेस्त थे उस समय मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने फिर एक बार गागरौन पर आक्रमण कर दिया। इस समय गागरौन पर राना के भांजे "पालन सिंग" का अधिकार था। सुल्तान ने पालन सिंग को हराकर गागरौन पर अधिकार कर लिया। पालन सिंग ने इस हार के समाचार अपने मामा राना कुम्भा को भेजे। समाचार मिलते ही कुम्भा ने तुरंत एक तुकड़ी सेना लेकर गागरौन पर आक्रमण करके फिर से उसे अपने अधिकार में कर लिया।

गुजरात के सुल्तान के साथ युद्ध 

महमूद खिलजी अब राणा कुम्भा से तंग आगया था। खिलजी ने अब गुजरात के सुल्तान के साथ मिलकर राना कुम्भा को घेरने की योजना बनायीं। इस समय गुजरात में सुल्तान "अहमदशाह" का शासन हुआ करता था। महमूद खिलजी ने गुजरात के सुल्तान को पत्र लिखा की, "मेवाड की सत्ता पर ऐसा राना बैठा हे" जिसने हमारे साम्राज्य को बहुत नुकसान पोह्चाया, "अगर जल्द ही उनको काबू नही किया गया" तो वह एक दिन मालवा को जित कर, "आपके सम्पूर्ण साम्राज्य को तेहसनहस कर डालेगा"। गुजरात के सुल्तान महमूद खिलजी के पत्र को स्वीकार किया और दोनों ने तय किया कि हम दो दिशावो से मेवाड को घेर कर हमला करेंगे और मेवाड़ पर अपना अधिकार कायम करेगे। इस संधि के तहत सुल्तान अहमदशाह अपनी विशाल सेना लेकर आबू को जीतकर मेवाड पर हमला करने केलिए बडा और दूसरी तरफ से मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी गागरौन की तरफ से मेवाड पर आक्रमण करने निकल पडा।

राणा कुम्भा ने अपने सरदारों और सेना को युद्ध की ललकार दी और बदनौर की मैदानों में सदी के भयानक युद्ध का आगाज हुआ। मेवाड़ी सैनिक और शत्रु सेना के बिच युद्ध प्रारभ हुआ। कुछ घंटो के महायुद्ध के बाद शत्रु सेना ने अपने पाव पीछे खीच लिए। इस युद्ध में राणा कुम्भा जित के साथ गरजे। अंतता इस युद्ध की गूंज संपूर्ण राजपूताने में गूंजी। राणा कुम्भा सदी के सबसे बलवान योद्धा सिद्ध हो गये।  

राणा कुम्भा की मृत्यु

अपने जीवन के अंतिम दिनों में उनकी किसी बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी। पर कुछ इतिहासकार लिखते हे की, जब राणा कुम्भा शिव की पूजा कर रहे थे तब उनके पुत्र "ऊदा सिंह" ने राणा कुम्भा की गरदन काट दियी। जिसके कारन उनकी मृत्यु हो गयी।

बत्तीस दुर्गो और मंदिरों का निर्माण

राणा कुंभा को जितना बाहुबल केलिए जाना जाता हे उससे कही ज्यादा उनके द्वारा बनाये गये हिन्दू मंदिरों और बत्तीस दुर्गो केलिए भी जाना जाता हे। राणा कुम्भा ने अपने जीवन काल में कयी उपाधिया भी मिली। उनोने अपने जीवन काल में कई दुर्गो का निर्माण किया। जिसमे कुम्भलगढ़ इतना विशाल दुर्ग हे जिसकी दीवार चीन की दीवार के बाद सबसे बड़ी और मोटी दीवार हे। 

राना कुम्भा को प्राप्त उपाधिया 

अभिनवभृताचाय॔, राणेराय, रावराय, हालगुरू, शैलगुरू, दानगुरू, छापगुरू, नरपति, परपति, अश्वपति, हिन्दू सुलतान, नांदीकेशवर जैसी उपाधिया राणा कुम्भा को प्राप्त हे। 


Post a Comment

0 Comments