मुंबई में कयी डॉन हुये लेकिन जैसी छवि हाजी मस्तान कि थी वैसी कोयी भी नही बना पाया। हाजी मस्तान को मुंबई का पहला डॉन कहा जाता हे। हालाकी मस्तान के पहले मुंबई में करीम लाला और वरदराजन की चलती थी लेकिन वो अपनी छवि डॉन जैसी नही बना पाये। मस्तान ने गलत धंदे किये लेकिन किसी आम आदमी को उसने तकलीफ नहीं दी। कैसे तस्कर हाजी मस्तान मुंबई का पहला डॉन कहलाया।
कोण था हाजी मस्तान
हाजी मस्तान का असली नाम मस्तान हैदर मिर्ज़ा था। तमिलनाडू के कुड्लोर गाव में १ मार्च १९२६ को मस्तान का जन्म हुआ। मस्तान के पिता हैदर मिर्ज़ा एक किसान थे। उनके पास इतनी जमींन थी की ठिकसे घर भी उनसे पल नही पा रहा था। कभी किसी दिन घर में खाना तक नही बन पाता। घर की हालत देखते हुए नये काम केलिए मस्तान के पिता हैदर मिर्ज़ा ने शहर जाने का फेसला किया ।
मुंबई आया हाजी मस्तान का परिवार
मस्तान के पिता ने घर की हालत सुधारने केलिये शहर जाने का मन बना लिया था। आखिरकार वो ८ साल के मस्तान और अपने परिवार के साथ १९३४ में काम की तलाश में मुंबई आते हे। मुंबई में आने के बाद कुछ दिन इधर उधर काम करने के बाद वो क्रॉफर्ड मार्केट के पास बंगाली टोला में सायकल रिपेरिंग की दुकान खोलते हे। सायकल रिपेरिंग की दुकान पर ही मस्तान ८ साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ काम करना चालू करता हे। लेकिन दुकान खोले भी बहोत वक्त हो चूका था लेकिन दुकान से कुच खास कमाई नही हो रही थी। दुकान पर बैठा मस्तान रोड पर आती जाती मेंहगी मेंहगी गाडियों और शानदार इमारतो को देखता हे वही से उसने अपने सपने संजोये थे की एक दिन वो सब उसके पास भी होगा।
कुली काम करने लगा मस्तान
मस्तान की सायकल रिपेरिंग की दुकान खोले हुये अब १० साल बित चुके थे। लेकिन अभी तक दुकान से कुच अछि कमाई नही हो पा रही थी। मस्तान अब १८ साल का हो चूका था। दुकान पर आने वाले कुच लड़के मस्तान के दोस्त बने चुके थे। वो एक दिन मस्तान से कहते हे तू दुकान से ज्यादा डॉक पर कमा सकता हे। डॉक पर कुली का काम करने चल वहा पर अछि कमाई होती हे। मस्तान उनके साथ डॉक पर काम करने जाता हे। वहा पे मस्तान ग़ालिब शेख नाम के इंसान से मिलता हे। ग़ालिब को तेजतरार लड़को की जरुरत होती हे। ग़ालिब मस्तान को काम बताता हे की तुम डॉक पर कुली का काम करो तो तुम जो जहाज आयेगे उनमे से कुच खास सामान तुमे अपने कपडे और थैले में छुपाकर लाना हे उसके बदले में तुमे अच्छे पैसे मिलेगे। मस्तान डॉक पर कुली का काम करना शुरू कर देता हे। मस्तान मन लगाकर काम करता हे। डॉक पर उसकी अब अच्छे खासे लोगो के साथ दोस्ती हो जाती हे।
जुल्म की दुनिया में मस्तान का कदम
चालीस के दशक में विदेश से लाये हुए इलेक्ट्रोनिक्स सामान, कीमती घडिया, सोना चांदी, गहने लाने पर बड़ी मात्रा में टैक्स की शकल में बड़ी रक्कम को देना पड़ता था। इसके कारन डॉक पे स्मगलिंग बड़े पैमाने में हो रही थी। कुच लोग हज पे जाते तो वह से गोल्ड और कीमती सामान लाते। मस्तान उन सामान को अपने कपडे और थैले में छुपाकर पोलिस वालो से बचाकर सामान को बाहर निकालता था। कुली होने की वजह से उसपर कोइ शक भी नही कर पाता। ग़ालिब की बात मस्तान को समज में आगयी और वो तस्करों की मदत करने लगा। कुछ तस्कर अपना सोना चांदी के बिस्किट का माल जहाज से लाते थे और मस्तान को दे देते थे वो सब मस्तान चुपचाप से डॉक के बाहर पोलिस वालोसे बचाकर निकालने लगा। मस्तान को अब अच्छी रक्कम काम के बदले मिलने लगी।
मस्तान की ईमानदारी
डॉक पर तस्करों की मदत करते करते इतेफाक से मस्तान की मुलाकात अरब के गोल्ड स्मगलर शेख मोहम्मद अल्दाबिज से होती हे। वो मस्तान को अपने साथ काम करने को कहता हे मस्तान मान जाता हे। एक दिन शेख मोहम्मद अल्दाबिज अपना गोल्ड का माल लेके डॉक पर आता हे। आने के बाद वो मस्तान को माल बाहर निकालने को कहता हे। मस्तान कुछ बॉक्स लेके बाहर निकल जाता हे लेकिन पोलिस शेख मोहम्मद अल्दाबिज को बाकि के माल के साथ पकड़ लेती हे और उसे तीन साल की सजा होती हे। तीन साल बाद जेल से निकल कर शेख मोहम्मद अल्दाबिज उसी डॉक पर जाता हे। वहा पे मस्तान से मिलने के बाद मस्तान उसे अपने घर पर ले जाता हे घर पर वो बॉक्स रखा हुआ था उसे खोला तक नही गया था। शेख मोहम्मद अल्दाबिज मस्तान की ईमानदारी पे खुश होकर उसे आधा सोना देता हे। मस्तान की जिंदगी यही से पलट जाती हे वो अचानक से अमीर बन जाता हे।
खुद तस्कर बन गया हाजी मस्तान
अब तक मस्तान को भी तस्करी के बारे काफी कुच समज में आ चूका था। डॉक पर अब उसकी दोस्ती दमन और गुजरात का कुख्यात तस्कर सुकुर नारायण बखिया के साथ होती हे। वो अब साथ मिलकर तस्करी का काम करते हे। वो अब सोने के बिस्किट, फिलिप्स के ट्रांजिस्टर और ब्रांडेड घड़ियों की खुद तस्करी करने लगा। दोनों ने मिलकर दुबई और एडेन इस सामान की तस्करी शुरू कर दी थी। जिसमें दोनों को खासा मुनाफा हो रहा था। कुछ सालो में ही मस्तान का नाम तस्करी में होने लगा और अब वो मुंबई का एक तरह से डॉन बन गया था।
जुल्म की दुनिया में हाजी मस्तान का नाम
पहले मुंबई में वर्धाराजन और करीम लाला का नाम चलता था। लेकिन वर्धराजन और करीम लाला अपनी छवि डॉन जैसी नही बना पाये। कुछ वक्त बाद वर्धाराजन चेन्नई लोट गया और करीम लाला भी अपना धंधा सिमिटने लगा। अब मस्तान का ही मुंबई पे राज था। १० साल के अंदर ही मस्तान ने समुन्दर पर की जाने वाली तस्करी की दुनिया में अपना नाम बना लिया वो अब मुंबई के समुन्दर का बादशाह बन गया था।
मस्तान का शोक
मस्तान ने अब तस्करी में इतने पैसे कमा लिये थे की अब उसके सब सपने पुरे करने का वक्त आ चूका था। मस्तान ने मुंबई के पॉश एरिया में अपना बड़ा बंगला बनाया। कीमती गाड़िया ली मस्तान अब हमेशा सफ़ेद कलर का डीजाय्नर सूट पेहनता था और trippal ५ ब्रांड का सिगरेट और सिगार हमेशा मस्तान पिता था।
बॉलीवुड से हाजी मस्तान का रिश्ता
मस्तान फिल्मो का बहोद शोकिन था वो फिल्मे देखना पसंद करता था। उस वक्त जितने भी फिल्मी लोग थे चाहे अमिताब बच्चन, दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त जैसे लोगो के साथ मस्तान का उठना बैठना था। ७० के दौर मे सलीम जावेद की फिल्म दीवार की कहानी हाजी मस्तान की जीवन पर बनी थी। मस्तान का कैरक्टर समजने केलिये अमिताब बच्चन घंटो तक मस्तान के घर बैठते थे उनसे बाते करते थे और ये फिल्म ने ही अमिताब बच्चन को पेहचान दिलायी फिल्म काफी सफल रही।
मधुबाला से इश्क
मस्तान कि फिल्म इंडस्ट्री से नजदीगी रही थी। तो एक दिन मस्तान की मुलाकात मधुबाला से होती हे और मस्तान को मधुबाला से इश्क हो जाता हे ये खबर मधुबाला तक जाती हे। लेकिन ये प्यार एक तरफ़ा था। मस्तान को पता था की मधुबाला से वो शादी नही कर सकता। लेकिन उस वक्त फिल्म इंडस्ट्री में एक नयी लड़की सोना नाम की आती हे। वो काफी हद तक उसकी शकल मधुबाला से मिलती हे। तो मस्तान सोना की कई सारी फिल्मो को फाय्नस करता हे। लेकिन सोना की फिल्मे नही चल पाती हे। लेकिन मस्तान सोना से शादी कर लेता हे।
हाजी मस्तान पहलीबार गिरफ्तार
मस्तान का नाम काफी उचा हो चूका था। उसे अब तक कभी गिरफ्तार नही किया गया उसकी दो वजह थी एक मस्तान पोलिस वालो को मेंहगे तोह्पे देता था। तो पोलिस वालो को वो तोह्पे देकर खरीद लेता था। और जो नही बिकते उनका मस्तान अपनी पोहच से ट्रान्सफर कर देता था। लेकिन १९७४ में मुंबई पोलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। लेकिन उसे जेल नही भेजा गया उसे कोल्हापुर के एक गेस्ट हाउस में रखा गया। उसे वहा पर एक vip की तरह रखा गया। उसे वो सब यैशोआराम की चीजे दी गयी जिसकी उसे जरुरत थी। इस कदर मस्तान का रुतबा मुंबई में बन चूका था।
इंदीरा गाँधी ने पहुचाया जेल
१९७५ में इंदीरा गाँधी ने इमरजेंसी लागु कियी तब बड़े बड़े नेताओ को जेलमे बंद किया जा रहा था। मस्तान के काफी किस्से इंदीरा गाँधी ने सुने थे। मस्तान इमरजेंसी में नेताओ को छुपने में मदत कर रहा था। तो मस्तान को भी इमरजेंसी में पेहली बार जेल जाना पड़ा। तब मस्तान ने प्रधानमंत्री इंद्रा गाँधी तक म्यासेज पोह्चाया की जेल से निकालने के बदले जितने चाहे उतने पैसे दूगां लेकिन बात नही बनी। जेल में मस्तान की मुलाकात जय प्रकाश नारायण से हुयी। यहाँ से मस्तान की जिंदगी काफी बदल चुकी थी। उसके इरादे भी बदल गये और इमरजेंसी ख़तम होने के बाद चुनाव हुये तब कांग्रेस की सरकार हटकर जनता पार्टी की सरकार बनी तब मस्तान के गुनाह माफ़ किये गये। क्युकी उसपर सिर्फ तस्करी की गुनाह थे। १८ महीने बाद जेल से बाहर निकल कर मस्तान ने जुल्म की दुनिया से बाहर आने की कोशिश शुरू कर दी।
हाजी मस्तान पड़ा नाम
जेल में जयप्रकाश नारायण मस्तान को काफी बदल देते हे। वो मस्तान को जुल्म की दुनिया से बाहर आने को कहते हे और मस्तान भी गलत धंदे छोडने का मन बना लेता हे। जेल से बाहर निकल कर मस्तान पहली बार हज करने जाता हे। हज से आकर मस्तान को लोग हाजी मस्तान कहने लगते हे। अब मस्तान जुल्म की दुनिया को धीरे धीरे छोड़ देता हे।
राजनेति में हाजी मस्तान का कदम
हज से आने के बाद हाजी मस्तान अपने गलत धंदे बंद करके राजनेति में आता हे। मस्तान अपनी पार्टी बनता हे। दलित नेता जोगिन्दर काम्बले के साथ मिलकर वो १९८४ में वो 'दलित मुस्लिम एकता संघ' नाम की पार्टी बनता हे। १९९० में पार्टी का नाम बदल कर 'भारतीय अल्पसंख्य' किया जाता हे। पार्टी का प्रचार फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार ने काफी किया हालाकि पार्टी को चुनाव में सफलता हासिल नही हुयी।
मुंबई का डॉन हाजी मस्तान
हाजी मस्तान मुंबई का वो डॉन था जिसने अपनी पूरी जिंदगी में किसी को जान से मारा नही, किसी पे गोलिया चलायी नही, किसी आम आदमी को परेशान किया नही । लेकिन फिर भी वो जुल्म की दुनिया में उसका बड़ा नाम रहा और वो मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन हाजी मस्तान कहलाया। हाजी मस्तान ने अपना आखरी समय अपनी बीबी और गोद लिये बेटे के साथ बिताया और १९९४ को हार्ड अटैक आने से उसकी मौत हो गयी। मस्तान ने गलत काम भी ईमानदारी से किये। साथ ही उसने हमेशा गरीबो की मदत की एक दौर में मस्तान ने पुरे मुंबई पे राज किया।
मस्तान के बाद बदल गया अंडरवर्ल्ड का चेहरा
हाजी मस्तान के राजनेती में आने के बाद मुंबई अंडरवर्ल्ड मे नये लोग उभरने लगे। दाऊद इब्राहीम, अरुण गवळी, छोटा राजन जैसे अनेक गिरोह उभरने लगे। इनोने वो किया जो हाजी मस्तान ने पूरी जिंदगी में कभी नहीं किया। मस्तान ने कभी खून खराबा, ड्रग्स स्मगलिंग, हत्यारो की तस्करी जैसे काम कभी नहीं किये। लेकिन जैसे ही हाजी मस्तान ने जुलुम कि दुनिया से किनारा किया। तो अंडरवर्ल्ड का चेहरा बदल गया और अंडरवर्ल्ड मे गॅंगवॉर और हत्यार तस्करी, फिरोती जैसे काम होने लगे जिन कामो से मस्तान को नफ़रत रही थी।
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