Karim lala |
कोण था करीम लाला
कारोबार करने हिंदुस्तान आया
कारोबार की शुरुवात
करीम लाला ने अपना कारोबार बढ़ाते हुये मुंबई में कयी सारे जुएं के हड्डे चलाना शुरू किये. जुएं के हड्डो से उसे अच्छी खासी कमाई होना शुरू हुयी. उसके बाद वो लोगो को पैसे ब्याज पे देने लगा वही से उसका नाम बदल कर अब्दुल करीम शेर खान से करीम लाला पड गया. पैसे ब्याज पे देते देते करीम लाला ने
शराब के हड्डो को भी चलाना शुरू कर दिया. तब मुंबई में शराब बंदी हुआ करती थी. शराब के हड्डो से लाला को और ज्यादा फायदा होने लगा. करीम लाला का शुरवात में एक वसूल रहा था किसीसे दुश्मनी करने से अच्छा उसको दोस्त बनालो. इन सारे गलत धंधो के बारे में पोलिस वालो को भी पता चल गया था. लेकिन लाला ने उनको दोस्त बनाकर उनको धंधे का कुछ हिस्सा वो पुलिसवालों को देने लगा.
तस्करी का कारोबार
१९४० में सोने चाँदी के जवाहरतो की तस्करी करना शुरू हुयी थी. तब हालाकि ये छोटे मोटे पैमाने हुआ करती थी. तब करीम लाला ने तस्करी का काम करना शुरू किया और इस धंधे में उसने खूब पैसे बना लिये. धीरे धीरे करीम लाला ने सब गलत धंदो में अपनी पकड़ बना ली. इन सब गैरकानूनी धंधो को जो करीम लाला के लोग सँभालते थे उने पठान गिरोह नाम पड़ा. इस तरह मुंबई का पहला माफिया गिरोह पठान गिरोह बना था. तब तक मुंबई में और कोई गिरोह नही था. ये सब करते करते वो एक तरह से गुंडा बन गया था और वो धीरे धीरे अपना धंधा मुंबई मे बढाता चला गया.
तिन हिस्सो में बटी मुंबई
४० का दौर आते आते करीम लाला का मुंबई में बड़ा नाम बन गया था. लेकिन ४० के दौर में और दो लोग उभर रहे थे हाजी मस्तान और वरदराजन. मस्तान को पता था की तस्करी का काम पठान गिरोह संभालता हे. एक दूसरे से दुश्मनी करने से अच्छा मिलजुलकर मुंबई में तस्करी का धंधा किया जाए. वरदराजन भी शांति से धंधा करना चाहता था. फिर इन तीनो में संमजोता हो जाता हे और ये अपने इलाके बाट लेते हे. समुन्दर का इलाका मस्तान का और बाकि का इलाका वरदराजन और करीम लाला का. ये सब अपना अपना धंधा अपने अपने इलाके में बिना किसी एक दुसरे से दुश्मनी मोल लिए संभालने लगे.
जनता दरबार
१९४० के बाद करीम लाला का नाम सातवे आसमान पर जा चुका था. लाला ने खूब पैसा बना लिया था और सब गैर कानुनी धंधे भी बिना किसी रूकावट के अच्छे चल रहे थे. करीम लाला को अब मुंबई में अब हर कोई जानता था. करीम लाला की एक सबसे अच्छी आदत रही थी उसे कोई भी अपनी परेशानी बताता तो लाला उसकी जिस तरह से हो उसकी मदत करता. कुछ समय बाद करीम लाला ने हर शाम अपने घरमे जनता दरबार लगाना शुरु किया. हर शाम करीम लाला के घर लोगो की भीड़ हुवा करती थी. हिन्दू मुस्लिम या कोई भी आम आदमी से बड़े से बडा आदमी वहा पोह्चने लगा. किसी का कोई झगडा हो या कोई भी उसकी शिकायत सब करीम लाला सुलझाने लगा.
इब्राहीम ब्रदर्स की तस्करी में एन्ट्री
१९४० से १९८० तक करीम लाला का मुंबई में बड़ा रुतबा रहा. इसका कारन था की मुंबई तिन हिस्सों में बटी हुयी थी और तीनो ही एकदूसरे के साथ मिलजुलकर धंधा कर रहे थे. कोई आपसी दुश्मनी नही थी. लेकिन ८०s के दौर तक नये लोग तस्करी के धंधे में आने लगे थे. उनमें दो भाई शबीर इब्राहीम और दूसरा दाऊद इब्राहीम तस्करी के धंधे में जल्द से जल्द अपना नाम बनाना चाहते थे. उनको पता था अब तस्करी के धंधे में सिर्फ करीम लाला हे तब तक वर्धाराजन ने भी धंधा सिमट लिया था और मस्तान भी गलत धंधो से किनारा कर राजनेती में आ गया था. तब इब्राहीम ब्रदर्स ने सीधा करीम लाला की पठान गिरोह को चुनोतिया देनी शुरू की और करीम लाला गिरोह और दाऊद गिरोह में दुश्मनी शुरू हुयी.
मुंबई में पहला गैंगवार
अब तक मुंबई में कोई भी गैंगवार नही हुआ था लेकिन १९८१ से १९८६ के बिच पठान गिरोह और दाऊद गिरोह के बिच जो दुश्मनी रही वही से गैंगवार शब्द मुंबई में शुरू हुआ. ८१ से ८५ के बिच इन दोनों गिरोह ने एक दुसरे के गिरोह के लोगो को मारना शुरू किया और मुबई में दो गिरोह के बिच खुनी जंग शुरू हो गयी. १९८१ में दाऊद के भाई शबीर को पठान गिरोह ने दिनदहाड़े मार दिया. अपने भाई की मौत से दाऊद बोखला गया था वो अब करीम लाला से बदला लेना चाहता था. लेकिन उसे सही मौका नही मिल रहा था. लेकिन १९८६ को दाऊद के गिरोह के लोगोने करीम लाला के भाई रहीम खान को मार दिया अब करीम लाला का पठान गिरोह दाऊद गिरोह के सामने कमजोर साबित होने लगा था.
करीम लाला का अंत
करीम लाला के अनसुने किस्से
इंदिरा गाँधी से मुलाकात
१९७३ में पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे पुरस्कार दिए जाने वाले थे. तब सिनेमा मे योगदान केलिए हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय को पद्मभूषण पुरस्कार दिए जाने का फैसला किया गया. पुरस्कार समारंभव दिल्ली के राष्टपती भवन में था. तो हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय को दिल्ली पुरस्कार लेने जाना था. तब ये बात करीम लाला को भी पता चली. तब करीम ने हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय से मुलाकात की और कहा मुझे राष्टपती भवन देखनी की ख्वाइश हे तो आप मुझे अपने साथ ले चले. तब मुंबई मे करीम लाला की तूती चलती थी तो हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय करीम लाला को मना नही कर सके. करीम लाला और हरेन्द्रनाथ दिल्ली के राष्टपती भवन में पुरस्कार लेने गये. वहा पे तमाम मंत्री और देश की प्रधानमंत्री इंदीरा गाँधी भी मौजूत थी. समारंभव ख़तम होने के बाद प्रधान मंत्री इंदीरा गाँधी मुलाकात करने हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय के पास गयी. तब करीम लाला ने अपना इंट्रोडक्शन देते हुए कहा की में एक पठान हु और पठान कौम केलिए काम करता हुआ तभी इन तीनो की तस्वीर ली गयी थी.
दाऊद की पिटाई
दाऊद और उसका भाई शबीर नये नये ही तस्करी के धंदे में आये थे. उनोने करीम लाला के इलाके में तस्करी का धंधा शुरू किया. इस से नाराज करीम लाला ने जब दाऊद उनके हत्थे चढ़ा तब उसकी खूब पिटाई की कहते हे की दाऊद वहा से अपनी जान बचाकर भागा था.
करीम लाला का बॉलीवुड से रिश्ता
क्राइम रिपोर्टर बलजीत परमार ने एक इंटरव्यू में करीम लाला के बारे में खुलासा करते हुये कहा था की करीम लाला का एक तरह से बॉलीवुड में क्रेज हुवा करता था. फिल्म के मुहरत हो या फिर सिल्वर जुबली या किसी स्टार की बर्थडे पार्टी इन सबमे करीम लाला को निमत्रित किया जाता था. करीम लाला हमेशा सबकी मदत करता था. तो कुल मिलाकर सब उस टाइम के फ़िल्मी सितारे करीम ला से जुड़े हुए थे अपना अपना काम निकलवाने केलिये. एक बार संजय खान ने करीम लाला को 'काला धंधा, गोरे लोग' फिल्म के लिए एक रोल की पेशकश की थी, लेकिन लाला ने इनकार कर दिया था फिर वो रोल सुनील दत्त को दिया गया था .
फिल्म अभिनेत्री हेलन की मदत
एक बार अभिनेत्री हेलन की अपने पति पीएन अरोड़ा से अनमन होगयी तो उनके पति ने उनका का सामान घर के बाहर फेक कर उने घरसे निकाल दिया और वो घर को ताला लगाकर खुद भी कई चले गये और जाते वक्त हेलन को घर में फिर कभी वापस मत आना केहकर चले गये. हेलन रोते रोते दिलीप कुमार के पास गयी. दिलीप कुमार को सारी बात बताने के बाद दिलीप कुमार ने एक कागज पे करीम लाला को उर्दू में ख़त लिखा. उस ख़त को लेकर हेलन डोंगरी करीम लाला के घर गयी और वो ख़त करीम लाला को दिया. करीम लाला ने ख़त पढकर कहा में देखता हु आप घर जाओ. हेलन के डोंगरी से अपने घर आने से पहले करीम लाला का सन्देश उसके पति को गया और उसने हेलन को घर में आने दिया और उसका सब सामान भी खुद घर के अंदर लिया फिर कभी हेलन को उसके पति ने परेशान नही किया.
अदालत में सब खड़े हो गये
एक बार किसी आरोप में करीम लाला पर मुकदमा चला. जब करीम लाला सुनवाई के दिन अदालत गया तब वहा पर बैठे सभी लोग करीम लाला को देख खड़े हो गये. जब सवाल जवाब करने केलिए करीम लाला को विटनेस बॉक्स में खड़ा किया गया तब फैसला सुनाने वाली जज महिला ने उसे अपना नाम बताने ने को कहा. तब करीम ने महिला जज को कहा ये काले कोट वाली औरत तुमे मेरा नाम तक नही पता क्या मुजे पूरी मुंबई करीम लाला नाम से जानती हे. तब कोर्ट में बैठे सब लोग जोर जोर से हसने लगे.
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