सट्टा कारोबार जीसे आमतौर पर मटका भी कहा जाता हे उसके कई दशक बेताज बादशहा रहे मटका किंग रतन खत्री की कहानी. कैसे इस मटके के कारोबार को मुंबई से बाहर पोह्चाया रतन खत्री ने.
Ratan Khatri |
रतन खत्री की जीवन कहानी
रतन खत्री बस नाम ही काफी हे सट्टा कारोबार में जिसे आमतौर पर मटका भी कहा जाता हे उसके बेताज बादशहा थे रतन खत्री. सिंधी परिवार से तालूक रखने वाले खत्री १९४७ में विभाजन के वक्त पाकिस्तान से मुंबई मे आये थे. १९६० में खत्री मटके के कारोबार से जुड़े गये. उनोने ये व्यवसाय कल्यानजी भगत के साथ मिलकर शुरू किया. हालाकि बादमे दोनो के रास्ते अलग हो गये. कछ (गुजरात) से आये कल्यानजी भगत को मुंबई का पहला मटका किंग कहा जाता हे. तब ये कारोबार वरली मटका के नाम से मशहूर था. कल्यानजी के केवल कॉटन (कपास) के भाव पर बोलिया लगाते थे. जिसमे रतन खत्री तब मनेजर हुआ करते थे. उस वक्त कुछ लोग सडको पर मटको से पर्ची निकालकर उसमे जो आकड़ा आया उसपर जिसने पैसा लगाया उसे विजेता मानकर उसे लगाये हुए पैसो के ९ गुना ज्यादा पैसे देते थे. उसे देखकर ही कल्यानजी को इस धंधे की आयडिया मिली. पर दिलचप्स बात ये हे की इस धंधे में कभी भी मटके का इस्तेमाल नही किया गया. कुछ सालोबाद कल्यानजी भगत और रतन खत्री के रास्ते अलग हो गये. इसके साथ ही रतन खत्री के सितारे बुलंद हो गये. खत्री ने 'रतन मटका' नाम से अपना मटके का
धंधा शुरू किया. उन्होंने इस धंधे को नये तोरतरिके से चलाना शुरू किया. दरअसल कल्यानजी भगत मटका कारोबार को पोशीदा तरीके से चलाते थे लेकिन रतन खत्री धंधे का प्रचार करने से नही हिचके. ७० के दशक तक खत्री का मटके का कारोबार इतना बढ़ गया की हर रोज वो लोगोको १ करोड़ ज्यादा का मटका खिलवाने लगे थे. १९७5 में इमरजेंसी लागु हुयी तब रतक खत्री को १९ महीनो केलिए जेल में डाल दिया गया. तब रतन खत्री के मटके के कारोबार काफी नुकसान पोहचा. लेकिन जेल से छुटते खत्री ने अपने मटके के कारोबारको फिर से बढा लिया था. कुछ सालो में ही खत्री का मटके कारोबार मुंबई से बाहर पुरे देश फ़ैल गया. कुछ समय बाद कानून ने इस धंधे पर पाबंदी लगा डाली फिर भी मटके का कारोबार चलता रहा.
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१९९० की शुरवात में रतन खत्री ने अपने मटके के कारोबार को बंद कर दिया. २०२० में मध्य मुबई में अपने परिवार के साथ रहते ८८ वर्षीय खत्री ने अपने घर में लम्बी भीमारी के चलते आखिरकार १० मई को आखरी सासे ली और मटके का किंग इस दुनिया को छोड़कर चला गया.
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